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4 असमर्थी बालकों हेतु राष्ट्रीय नीतियाँ, 2006 : समावेशी शिक्षा के सन्दर्भ में NATIONAL POLICY FOR PERSON WITH DISABILITIES, 2006 WITH REFERENCE TO INCLUSIVE EDUCATION

4 असमर्थी बालकों हेतु राष्ट्रीय नीतियाँ, 2006 : समावेशी शिक्षा के सन्दर्भ में [NATIONAL POLICY FOR PERSON WITH DISABILITIES, 2006 WITH REFERENCE TO INCLUSIVE EDUCATION]


शारीरिक रूप से बाधित बालकों के प्रति सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थाओं का भूतकाल तथा वर्तमान में विशिष्ट प्रयासों का अभाव रहा है तथा इस ओर कभी ध्यान भी नहीं दिया गया। समाज तथा सभ्यता में परिवर्तन होने के साथ-साथ ही शारीरिक रूप से बाधित बालकों की शिक्षा प्रणाली में भी परिवर्तन होते गये। प्रथम चरण में तो बाधित व वंचित बालकों को अभिशाप समझा जाने लगा तथा माता पिता के द्वारा इन बालकों को बोझ समझा जाने लगा। दूसरा चरण शुरू होते ही इन बालकों को माता पिता का थोड़ा सा संरक्षण प्राप्त होने लगा। परन्तु फिर भी कहा गया कि अपगंता पूर्णतः बेकार है, ये स्वयं कुछ भी करने में असमर्थ है, ये ऐसे जीव हैं, जो कृपा के पात्र हैं तथा जब तक ये जीवित है तब तक इनकी देखभाल करनी होगी।

"The disabled are useless, inseperable of doing any thing on their own, a species to be pitied and looked after as long as they are alive."

अतः उनकी शिक्षा, प्रशिक्षण, आजीविका तथा पुनर्वासन के बारे में प्रयास नहीं किये गये। अगली अवस्था में उनकी शिक्षा के लिये एक प्रयास किया गया, लेकिन बालकों को अन्य बालकों से अलग समझा गया। अंत में यह विचार किया गया कि इन बालकों के लिये अलग से शिक्षा व्यवस्था की जाये। यह शिक्षा व्यवस्था बनाने हेतु ही विशिष्ट अथवा समावेशी शिक्षण संस्थाओं का निर्माण किया गया।


20वीं शताब्दी के शुरू होते ही नये-नये विचारों तथा धारणाओं का जन्म हुआ तथा यह समझा जाने लगा कि यदि विशिष्ट शिक्षा प्रदान की जाये तो समाज में अपंग बालकों को भी उच्च शिक्षा प्रदान की जा सकती है। धीरे-धीरे राष्ट्रीय नीतियों के अन्तर्गत भी विशिष्ट शिक्षा को स्थान प्रदान किया गया। आज विशिष्ट अथवा समावेशी शिक्षा के क्षेत्र में अत्यन्त महत्वपूर्ण परिवर्तन किये गये तथा सरकारी नीतियों में समावेशी शिक्षा को महत्व दिया गया।


राष्ट्रीय विकलांग जन-नीति, 2006 (NATIONAL POLICY FOR PERSONS WITH DISABILITIES, 2006)

राष्ट्रीयपूविकलांग जन-नीति, 2006 भारतीय संविधानपूमें इंगित पदो जैसे समता, स्वतन्त्रता, न्याय और सम्मान पर जोर देते हुए जन-जन के बीच इस उद्देश्य को पूरा करना है कि चाहे कोई भी व्यक्ति नियोग्य हो या नहीं, क्षमताएँ अपने आप में अनूठी होती है और इनका क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत है तथा इनको सीमाओं में नहीं बाँधा जा सकता है। अतः नियोग्य व्यक्तियों कोपूअगर आप पूरा अवसर और पुनर्वास कीपूसुविधाएँ प्रदान करें तो यह लोग भीपूसामान्य व्यक्तियों की तरह आगे बढ़करपूभारत के सर्वशिक्षा अभियान के स्वप्न को पूरा करने में सहयोगपूदे सकते हैं। आवश्यकता है केवलपूएक सकारात्मक सोच की।
राष्ट्रीय जन विकलांग नीति 2006 का पुनर्गठन वर्ष 2006 में मीरा कुमार द्वारा किया गया। इसमें भारत में नियोग्य व विकलांग व्यक्तियों के पुनर्वास हेतु अन्य अधिनियमों, शैक्षिकपुवपुचिकित्सीय प्रशिक्षणपुप्रदान करने वालेपुसंस्थानों का उल्लेखपुकिया गया है।
समावेशी शिक्षा के सन्दर्भपुमें विकलाग व्यक्तियों के लिये शिक्षा प्रदानपुकरने के लिये राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2006 में निम्नलिखित प्रावधान है 
1. सामाजिक तथा आर्थिकपुविकास के लिये शिक्षा सबसे उपयोगीपूमाध्यम है। संविधान केपूअनुसार अनुच्छेदपुशन्क में शिक्षा को कार माना गया है तथा निःशक्त व्यक्ति अधिनियम, 1995 कीपुधारा 26 के अनुसार, कम सेपुकम 18 वर्ष की आयु के सभीपुविकलांग बच्चों को निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध करायीपुजानी है। वर्ष 2001 कीपुजनगणना के अनुसार लगभग 55 प्रतिशत विकलांग व्यक्ति अनपढ़ है। विकलांग व्यक्तियों को समावेशी शिक्षा के माध्यम से सामान्य शिक्षा पद्धति की मुख्य धारा में लाये जाने की आवश्यकता है।
2. सरकारपुद्वारा सर्व शिक्षा अभियान शुरू किया गया है जिसकापुउद्देश्य 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों केपुलिये 2010 तक 8 वर्ष की प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना है। इन बच्चोंपुमें विकलांग बच्चे भी सम्मिलित है। 15-18 वर्ष कीपुआयु वर्ग के विकलांग बच्चों को एकीकृत दिशापुयोजना (आई. ई. डी. सी) के अन्तर्गत निःशुल्क शिक्षा दी जायेगी।
3. भारत सरकारपुविकलांग छात्रों को स्कूल स्तर के बाद अध्ययन करने पुके लिये छात्रवृत्तियोंपुप्रदान करती है। 
4. विकलांग व्यक्तियों को उच्च व व्यावसायिक शिक्षा हेतु विश्वविद्यालय तकनीकी संस्थाओं तथा उच्च शिक्षा की अन्य संस्थाओं में अनेक सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं।
5. सुविधारहित तथा अल्प सुविधा वाले क्षेत्रों में विद्यमान संस्थाओं को अनुकूल बनाकर या संस्थाओं को शीघ्र स्थापना करके विभिन्न प्रकार के उत्पादकारी क्रियाकलापों के अनुरूप विकलांग व्यक्तियों में कौशल विकासपुबढ़ाने के लिये तकनीकी तथा व्यावसायिक शिक्षापुकी सुविधाओं को प्रोत्साहित किया जाता है। व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदानपुकरने के लिये गैर-सरकारी संगठनोंपुको भी प्रोत्साहित किया जाता है।
6. राज्य सरकारों, निकायों तथा स्वैच्छिक संगठनों द्वारा कार्यान्वित की आई. ई. डी. सी. योजना के अन्तर्गत विशेष शिक्षको  और स्टेशनरी, वर्दी, परिवहन दृष्टि, विकलांगों के लिये, रीडरभत्ता, होस्टल भत्ता, अनुदेशन सामग्री या सामान्य शिक्षकों का प्रशिक्षण आदि विभिन्न सुविधाओं के लिये वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
7. विकलांग बच्चों की पहचान, सम्मिलित स्कूलों में इनका दाखिला तथा इनकी शिक्षा जारी रखने के लिये सरकार की ओर से नियमित सर्वेक्षणों द्वारा सफल प्रयास किये जाते है। सरकार विकलांग बच्चों के लिये उपयुक्त तरीके से शिक्षण सामग्री तथा पुस्तको प्रशिक्षित शिक्षकों तथा स्कूल भवनों आदि की उपलब्धता सुनिश्चित करती है।
8. विकलांग महिलाओं की विशेष जरूरतों का ध्यान रखते हुए उनके लिये शिक्षा, रोजगार तथा अन्य पुनर्वास सेवाएँ प्रदान करने हेतु विशेष कार्यक्रम बनाये गये हैं। विकलांग महिलाओं के लिये शैक्षिक एक व्यावसायिक प्रशिक्षण सुविधाओं  की जाती है।

समावेशी शिक्षा के सन्दर्भ में शिक्षा नीति, 2006 (EDUCATION POLICY, 2006 WITH THE REFERENCE OF INCLUSIVE EDUCATION)

विकलाग व्यक्तियों की शिक्षा के लिये यह सुनिश्चित किया गया है कि प्रत्येक विकलांग बच्चे की स्कूल स्तर की शिक्षा के लिये उपयुक्त पहुँच हो। इसके लिये असमर्थ व्यक्तियों की शिक्षा के लिये राष्ट्रीय नीति, 2006 में निम्नलिखित बातों का विशेष ध्यान रखा गया है संख्या तथा शिक्षा जारी

1. प्राईमरी माध्यमिक तथा उच्चतर शिक्षा स्तर पर विकलांग बच्चों की रखने की वार्षिक समीक्षा करने के लिये अलग व्यवस्था की जायेगी।

2. विकलांग बच्चों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये प्रत्येक राज्य/संघ राज्य क्षेत्र में समावेशी शिक्षा के मॉडल स्कूल स्थापित किये जायेंगे।

3. अनेक विकलांग बच्चे जो समावेशी शिक्षा में शामिल नहीं हो सकते, को विशेष स्कूलों में शैक्षिक सेवाएँ मिलती रहेगी। विशेष स्कूल मुख्य धारा की समावेशी शिक्षा में शामिल होने के लिये विकलांग बच्चों को तैयार करने में सहायता करेंगे।

4. विभिन्न विकलांग बच्चों के लिये पाठ्यक्रम तथा मूल्यांकन पद्धति का विकास किया जायेगा। जिनमें उनकी आवश्यकताओं तथा क्षमताओं का ध्यान रखा जायेगा। गणित की पढ़ाई केवल एक भाषा सीखना आदि जैसी कुछ रियायत देकर परीक्षा पद्धति में सुधार किया जायेगा जिससे कि उसे विकलांगों में के अनुकूल बनाया जा सके।

5. 6 वर्ष की आयु तक के विकलांग बच्चों की पहचान की जायेगी तथा इसके बाद उनका आवश्यक उपचार किया जायेगा ताकि वे समावेशी शिक्षा में भाग ले सके।

6. मानसिक रूप से अपंग बच्चों के लिये मनोवैज्ञानिक पुनर्वास केन्द्रों में शिक्षा सुविधाएँ प्रदान की जायेगी।

7. कुछ स्कूल विकलांग बच्चों का नामांकन नहीं करते हैं। ऐसा मुख्य रूप से स्कूल अधिकारियों तथा शिक्षकों की विकलांग व्यक्तियों की क्षमता के बारे में क्षमता की कमी के कारण होता है। विकलांग बच्चों को समावेशी शिक्षा में शामिल करने के लिये स्कूल के शिक्षकों, प्राचार्य तथा अन्य कर्मचारियों से जानकारी प्रदान करने के लिये विशेष कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे। 

8. विकलांग व्यक्तियों के लिये उच्च शिक्षण संस्थाओं में तीन प्रशित आरक्षण की व्यवस्था की जायेगी। विकलांग छात्रों की शैक्षिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए विकलांगता केन्द्र स्थापित करने के लिये विश्वविद्यालयों, कॉलेजों, व्यावसायिक संस्थाओं को वित्तीय सहायता प्रदान की जायेगी। उन्हें विकलांग छात्रों के लिये कैम्पस में कक्षा छात्रावास तथा अन्य सुविधाएँ प्रदान करने के लिये भी प्रोत्साहित किया जायेगा ताकि विकलांग बच्चों को समावेशी शिक्षा प्रदान की जा सके।

9. सभी स्कूलों को सभी प्रकार के विकलांग बच्चों के लिये बाधा मुक्त बनाया जायेगा ताकि सभी बच्चों की इन स्कूलों तक पहुँच हो। बनाया

10. शिक्षण का माध्यम तथा उसकी पद्धति को सामान्य तथा बाधित बच्चों के अनुकूल जायेगा ताकि सभी बच्चों का शैक्षिक विकास सम्भव हो सके।

11. तकनीकी, अनुपूरक तथा विशिष्ट शिक्षा की व्यवस्था एक ही स्कूल में उपलब्ध करवाई जायेगी, जहाँ पर कुछ स्कूल आसानी से जा सके।

12. स्कूलों में सहायक सामग्री उपलब्ध करवाई जायेगी। स्कूलों में सामान्य पुस्तकालयों, ई-पुस्तकालयों, बेल पुस्तकालयों एवं टाकिंग पुस्तकालयों, स्रोत कक्षों आदि की स्थापना करने के लिये सुविधाओं का विस्तार करने हेतु प्रोत्साहन दिये जायेंगे। 

13. राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयों तथा दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रमों को लोकप्रिय बनाया जायेगा तथा उनकाविस्तार देश के अन्य भागों में किया जायेगा।

14. विकलांग व्यक्तियों द्वारा आपसी बातचीत के लिये सांकेतिक भाषा, वैकल्पिक व अभिवृद्धि सम्बन्धी संप्रेषण माध्यमों को मान्यता प्रदान की जायेगी तथा इनका मानवीकरण किया जायेगा। इन्हें लोकप्रिय भी बनाया जायेगा।

15. विद्यालयों को ऐसी जगह पर स्थापित किया जायेगा जो विकलांग क्षेत्रों की सुविधा के अनुसार हो और जहाँ से यात्रा दूरी कम हो। विकल्प के तौर पर राज्य, समुदाय एवं गैर-सरकारी संगठनों की सहायता से व्यवहार्य यात्रा के प्रबन्ध किये जायेंगे। 

16. स्कूलों में माता-पिता अध्यापक परामर्श तथा शिकायत निवारण प्रणाली की स्थापना की जायेगी। कुछ मामलों में विकलांगता, निजी परिस्थितियों और प्राथमिकताओं के स्वरूप के कारण गृह आधारित शिक्षा प्रदान की जायेगी।

17. शिक्षा के क्षेत्र में कम्प्यूटर का विशेष महत्त्व है। ऐसा प्रयास किया जायेगा कि प्रत्येक विकलांग बच्चे को कम्प्यूटर के प्रयोग का समुचित ज्ञान हो। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा वर्तमान में सहायता दिये जा रहे विशेष स्कूल, बढ़ती हुई समावेशी शिक्षा के लिये संसाधन केन्द्र बन जायेगे। मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा आवश्यकता के अनुसार नये विशेष विद्यालय खोले जायेंगे। विकलांग बच्चों के प्रबन्ध सम्बन्धी मुद्दों पर एक मॉड्यूल अध्यापकों के प्रवेश तथा सेवाकालीन प्रशिक्षण कार्यक्रमों में शामिल करना।

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