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3 समावेशी शिक्षा के प्रतिमान MODELS OF INCLUSIVE EDUCATION

3 समावेशी शिक्षा के प्रतिमान [MODELS OF INCLUSIVE EDUCATION]

वर्तमान समय में विशिष्ट आवश्यकताओं वाले बच्चों के प्रति विश्व शिक्षा समुदाय का ध्यान बढ़ता जा रहा है। इन विशिष्ट आवश्यकताओं वाले बच्चों के सक्षम बच्चों में समावेशन हेतु विश्व समुदाय गहनता से एकजुटता प्रदर्शित करता जा रहा है। यह (समावेशन) एक ऐसी शैक्षिक प्रक्रिया है, जिसमें अशक्त बच्चों को सामान्य पाठशाला में सामान्य सहपाठियों के साथ शिक्षा प्रदान की जाती है। यह बच्चे को शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक रूप से सामान्य परिवेश में स्थान देता है। अतः यह एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें असक्षम बच्चों को सक्षम बच्चों में समायोजित किया जाता है। भारत वर्ष में भी एक ठोस बुद्धिजीवी वर्ग इस दिशा में कार्यरत है। यहाँ अनेक राज्यों में समावेशन को अपना लिया गया है। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि समावेशन हेतु कौन से ऐसे प्रतिमान (Models) होने चाहिये, जिससे सफल समावेशन सुनिश्चित किया जा सके। ऐसे ही कुछ प्रतिमानों का उल्लेख निम्न प्रकार से किया जा सकता है—

1. सांख्यिकीय मॉडल (Statistical Models)- सांख्यिकीय मॉडल की उत्पत्ति का कारण है, व्यक्तिगत विभिन्नता जिसके कारण व्यक्तियों में तथा बालकों में अन्तर पाये जाते हैं। यह अन्तर ही बालको की विशिष्टता के विषय में बताते हैं। विभिन्न मनोवैज्ञानिकों के अनुसार कभी भी दो बालक एक समान नहीं होते हैं उनमें प्रायः कुछ न कुछ अन्तर अवश्य पाये जाते हैं। बालकों में सभी लक्षणों में धनात्मकता पाई जाती है। परन्तु फिर भी यह सम्भावना होती है कि बालक शारीरिक तथा मानसिक रूप से अलग-अलग हो सकते हैं।

यदि बालकों के शारीरिक लक्षणों को एक समान देखा जाये तो भी लक्षणों का वितरण रेखाचित्र | के ही समान हो जायेगा। यानि कि बालकों के 30% लक्षण अन्य से भिन्नता लिये होते हैं। यह अन्तः व्यक्तिगत भिन्नता कहलाती है।


2. मौखिक संचार मॉडल (Oral Communication Model)-मौखिक संचार में भिन्न बालक मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं। प्रथम वाच्य क्षतियुक्त बालक हैं। इस प्रकार के बालकों में किसी न किसी प्रकार के बोलने का दोष होता है, जैसे-हकलाना, स्वरदोष (Stuttering. Vocal Disorder), दूसरे भाग में भाषा विकलांग बालक हैं। ये वे बालक हैं जो उस भाषा को नहीं जानते जो कि उनके वातावरण यथा-स्कूल, बाजार में बोली जा रही है। साथ ही भाषा विकलांग बालकों के अंतर्गत वे बालक भी आते हैं जो मातृभाषा भी ठीक से नहीं बोल पाते हैं। यद्यपि मौखिक संचार में भिन्नता का कारण बालकों में भिन्न-भिन्न होता है, तथापि इस श्रेणी में आने वाले बालकों की एक ही प्रमुख समस्या होती है। वह है-अपने विचारों को दूसरों तक न पहुँचा पाना। इस कारण निम्नलिखित परिणाम सामने आते है

(1) संवेगात्मक रूप से अव्यवस्थित 

(2) सीखने में मन्द गति

(3) व्यक्तित्व संबंधी दोष

(4) पिछड़ापन 

(5) भग्नाशा का अनुभव करना

उपर्युक्त कारणों से बालक की शैक्षिक उपलब्धि नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है। इससे उसका व्यावसायिक जीवन भी प्रभावित होता है। अतः विद्यालयों में इस प्रकार के विशिष्ट बालकों हेतु विशेष प्रोग्राम होने चाहिए।


3. चिकित्सीय अथवा जीव-विद्या मॉडल (Medical or Biological Model)– चिकित्सीय अथवा जीव-विद्या से संबंधित मॉडल के अन्तर्गत वह बालक आते हैं जो कि शारीरिक रूप से अक्षम होते है। यह शारीरिक भिन्नता कई कारणों के फलस्वरूप हो सकती है। यह कारण निम्नलिखित है:-

1. कई बार आनुवांशिक कारणों की वजह से भी शारीरिक अक्षमता आ जाती है। 

2. जन्मोपरान्त चोट (Postnatal Injury) के कारण भी शारीरिक अक्षमता आ जाती है। 

3. जन्म के समय होने वाली क्षति के कारण भी शारीरिक अक्षमता आ जाती है।

4 जन्म पूर्व क्षति (Prenatal Damage) अर्थात् जन्म से पूर्व यदि गर्भवती महिला कोई दवा खा ले अथवा अन्य कोई ऐसे कार्य कर ले जिनमें गर्भ में समस्या उत्पन्न हो जाए, तो यह जन्म पूर्व क्षति कहलाती है।

अर्थात् शारीरिक रूप से भिन्न बालकों को प्रायः लोग मानसिक रूप से कमजोर मान लेते हैं। परन्तु वास्तविकता में ऐसा नहीं होता है। अतः इनके लिए विशेष शिक्षा का आयोजन इनकी शारीरिक कमी को ध्यान में रखकर करना चाहिए, न कि मानसिक स्तर को परन्तु इनको शिक्षा मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों के आधार पर देना अनिवार्य है, क्योंकि शारीरिक अक्षमता इनके मनोविज्ञान को नकारात्मकमीरूप से प्रभावितमीकर सकती है।


4. सांस्कृतिक मॉडल (Cultural Model)– सांस्कृतिक रूप से अलग बालकों में मुख्यतः अधिगम असुविधायुक्त तथा सांस्कृतिक रूप से अल्पसंख्यक तथा वंचित बालक आते हैं। अधिगम असुविधायुक्त बालकों को वे सब सुविधाएँ नहीं प्राप्त होती हैं जो प्रायः सामान्य बालकों को प्राप्त हो जाती है। अतः इनका अधिगम स्तर गिर जाता है। इससे उनकी शैक्षिक उपलब्धि नकारात्मक ढंग से प्रभावित होती है। सांस्कृतिक रूप से भिन्न बालक वे नहीं हैं जिनकी अपनी कोई संस्कृति नहीं होती है, बल्कि ये वे हैं जो उस परिवेश से, जिसमें वे रह रहे हैं. एक संस्कृति को रखते हैं। ऐसे बालक समाज के उन अनेकानेक बालकों से भिन्न होते हैं जिनकी संस्कृति समान है। यह विशिष्टता कई सामाजिक, मनोवैज्ञानिक तथा शैक्षिक समस्याओं को जन्म देती है। अतः सांस्कृतिक रूप से भिन्न बालक भी विशेष शिक्षा का अधिकारी है क्योंकि वह अन्य बालकों से भिन्न इस कारण विशिष्ट है। वंचन एक सामाजिक-आर्थिक समस्या है। सामाजिक-आर्थिक कारणों से वंचन की स्थिति उत्पन्न होती है। एक वंचित बालक जीवन के कई रूप इसलिए नहीं देख पाता कि वह सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित होता है। ऐसे वंचित बालक भी विशिष्ट बालकों की श्रेणी में आते हैं। इनके लिए सामान्य शिक्षा के साथ-साथ अतिरिक्त शैक्षिक प्रावधानों की भी आवश्यकता है।


5. मनोसामाजिक मॉडल (Psychosocial Model)–मनोसामाजिक रूप से अलग-अलग प्रवृत्ति के प्रत्येक बालक इस श्रेणी में आते हैं। एक संवेगात्मक रूप से परेशान बालक को अपनी भावनाओं के प्रदर्शन में कठिनाई अनुभव होती है। ऐसे बालक भावनाओं को सही रूप से प्रबंधित नहीं कर पाते. अतः संवेगात्मक असंतुलन का प्रदर्शन करते हैं। इस प्रकार न केवल वे अपने लिए बल्कि अन्य लोगों के लिए भी समस्या उत्पन्न करते हैं। प्रायः यह देखने में आता है कि संवेगात्मक रूप से परेशान बालक अन्य लोगों से परेशान रहते हैं, उन्हें समाज और इसके नियम परेशान करते हैं। संवेगात्मक रूप से परेशान बालकों की संख्या काफी होती है। इसके साथ यह समस्या भी है कि ऐसे बालक का पता नहीं चल पाता।। सामाजिक रूप से कुसमायोजित बालक अपने परिवार के सदस्यों, मित्रों, सहयोगियों और समाज के विभिन्न सदस्यों से नियमानुसार व सहज ढंग से अन्तक्रिया नहीं कर पाता है। इसके कारण वह सामाजिक रूप से स्वीकृत विचारों तथा गुणों को सीखने से वंचित रह जाता है। इसके दुष्परिणाम उसके चरित्र व्यक्तित्व, कार्यप्रणाली तथा व्यवसाय में देखने को मिलते हैं। अतः मनोसामाजिक रूप से भिन्न बालक एक ऐसा विशिष्ट बालक है जिसे विशेष ध्यान ही नहीं विशेष शिक्षा की भी आवश्यकता है। मनोसामाजिक रूप से भिन्न बालकों में समस्यात्मक तथा अपराधी बालक भी आते हैं। वास्तव में, ऐसे बालक मनोसामाजिक भिन्नता का परिणाम है। दूसरे शब्दों में संवेगात्मक व सामाजिक अस्थिरता इन्हें समस्यात्मक तथा अपराधी बनाती है। इसके लिए विशेष शिक्षा का होना अनिवार्य है।


6. पूर्ण समावेशन प्रतिमान (Full Inclusion Model) समावेशी शिक्षा का यह प्रतिमान बच्चों को कक्षा में अनुदेशन तथा सहयोग प्रदान करने से सम्बन्धित है। इस हेतु एक विशिष्ट अध्यापक की व्यवस्था की है। यह विशिष्ट अध्यापक अपनी विधि एवं सहायक सामग्री के साथ कक्षा-कक्ष में प्रवेश करता है। उक्त अध्यापक बच्चों को सामाजिक अध्ययन की कक्षा में सामाजिक अध्ययन पढ़ता है तथा हिन्दी की कक्षा में हिन्दी सीखाने में मदद करता है। कहने का भाव यह है कि यह विशिष्ट अध्यापक बच्चे की विषयावार सीखाने में सहायता करता है, वह न केवल बच्चों का वरन् समावेशन में शामिल सामान्य अध्यापकों का भी सहयोग करता है। हालांकि यह विशिष्ट अध्यापक अनुदेशन के सामान्य अध्यापकों की मदद करता है फिर बच्चे की पूरी जिम्मेदारी अध्यापक की ही होती है। ऐसा सिर्फ इसलिये होता है क्योंकि एक बाधित बालक का पूरा-पूरा रिकॉर्ड तक रिपोर्ट सामान्य अध्यापक के पास ही होती है। उसके पास इस बात की पूरी-पूरी सूचना होती है कि बच्चा एक नियमित अन्तराल पर किस हद तक उन्नति एवं प्रगति कर रहा है। इस विशिष्ट अध्यापक के साथ मिलकर सामान्य अध्यापक कुछ नवीन नीतियाँ निर्धारित करता है तथा पुरानी नीतियों में परिवर्तन कर सकता है। इस प्रतिमान के अन्तर्गत बालक को प्रत्यक्ष अनुदेशन के साथ-साथ स्वतंत्र रूप से पढ़ने का अवसर भी प्रदान किया जाता है।


7. दल शिक्षण प्रतिमान (Team Teaching Model) समावेशी शिक्षा के इस प्रतिमान के अन्तर्गत सामान्य एवं विशिष्ट अध्यापक सभी बच्चों को एक ही कक्षा में एक साथ पढ़ाते हैं। इन सभी प्रकार के बच्चों को एक साथ बैठने के अवसर इसलिये प्रदान किये जाते हैं, ताकि वे हर तरह के दबाव से मुक्त होकर एक दूसरे को समझने लगें तथा उनके हृदय में एक-दूसरे के प्रति विद्यमान दूरी को समाप्त किया जा सके। यह एक सुनियोजित प्रतिमान है। इसलिये इसे लागू करने से पूर्व पूर्णतः नियोजित करना अनिवार्य है। इस प्रतिमान के माध्यम से प्रभावशाली सह-शिक्षा तभी सम्भव हो सकती है। जब सामान्य एवं विशिष्ट अध्यापक दोनों एक-दूसरे के साथ मिलकर कार्य करे। सह-शिक्षा के विकास हेतु दो बातों का ध्यान रखना अनिवार्य है

(i) सफल सह-शिक्षकों (विशिष्ट व सामान्य) को अपनी सहभागिता प्रति पूर्णतः ईमानदारी बरतनी चाहिये। जिस काम को सामान्यतः एक अध्यापक द्वारा किया जाता है। उसी काम को दो अध्यापकों से करवाने हेतु उनमें आपसी समन्वय अनिवार्य है।

(ii) समावेशी दल-शिक्षण में मौलिक घटकों को हमेशा ध्यान में रखा जाना अनिवार्य है यथा अध्यापक विकास, समय सहभागिता आदि। समावेशी शिक्षा के इस प्रतिमान में नियोजन का कार्यान्वयन अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। यह प्रतिमान सफल शिक्षण की ओर लेकर जाता है, जिससे शिक्षक एवं शिक्षार्थी दोनों को लाभ होता है।


8. वैंग का अनुकूलित अधिगम वातावरण प्रतिमान (Wang's Adaptive Learning Environment Model— WALEM) –समावेशी शिक्षा के अन्तर्गत बैंग का अनुकूलित अधिगम वातावरण प्रतिमान को विशिष्ट कहता है। यह कक्षाओं में विशिष्ट बच्चों को समेकित करने वाला एक बहुमुखी प्रतिमान है। इस प्रतिमान की रचना करने का प्रमुख ध्येय बच्चों में मूलभूत बौद्धिक कौशलो को विकसित करना है ताकि वे स्कूल को अपने प्रति अपेक्षाओं की पूर्ति अपनी योग्यताओं के अनुकूल कर सकें। इस हेतु बच्चों को अपनी गति के अनुसार सीखने की पूरी पूरी छूट प्रदान की जाती है। प्रायः प्रत्येक बच्चे को कक्षा-कक्ष में अपने क्रियाकलापों को स्वतंत्र रूप से पूर्ण करने का मौका प्रदान किया जाता है। शिक्षक अपने अनुदेशन एवं उसकी प्रतिपुष्टि को पूर्ण रूप से बच्चों की आवश्यकताओं के अनुरूप पूरा करता है।

समावेशी शिक्षा के इस प्रतिमान में बच्चों को अपने अधिगम को नियोजित एवं नियंत्रित करने का अवसर प्रदान किया जाता है तथा वे अपनी अधिगम क्रियाओं को पूरा करने हेतु खुद उत्तरदायी होते हैं। इस सम्पूर्ण क्रिया का सुनियोजित ढंग से संचालन करने हेतु वैग महोदय द्वारा एक डाटा बेस (Data Base) तैयार किया गया। इस डाटा बेस की तैयारी उन्होंने शिक्षकों हेतु उनके कौशल एवं ज्ञान में और अधिक वृद्धि करने के लिये की। इस प्रतिमान हेतु उपयुक्त अपेक्षित प्रशिक्षण जरूरी है। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि इस प्रतिमान के अन्तर्गत एक शिक्षक को बच्चों के प्रति पूर्णतः समर्पित रहना पड़ता है। समावेशी शिक्षा के इस प्रतिमान को उपयोग में लाने विशिष्ट एवं सामान्य शिक्षकों के मध्य आपसी सम्बन्ध में और अधिक घनिष्ठता आ जाती है तथा सामान्य बच्चों को विशिष्ट बच्चों के साथ मधुर सम्बन्ध कायम करने हेतु प्रोत्साहन दिया जाता है।


9. समावेश-चक्र प्रतिमान (Circle of Inclusion-Model)–समावेशी शिक्षा का यह एक अति महत्त्वपूर्ण प्रतिमान है, जिसमें बच्चे के व्यक्तिपरक ज्ञान की ओर ध्यान दिया जाता है। यह प्रतिमान अत्यधिक व्यक्तिपरक है। समावेशी शिक्षा के इस प्रतिमान को बहुत छोटे बच्चों (आठ वर्ष की आयु तक) हेतु प्रयोग में लाया जाता है। लेकिन इसमें ऐसे विकल्प है जिससे बच्चों का अवस्थान हो सकता है। इस प्रतिमान को अनेक परिस्थितियों में प्रयोग में लाया जा सकता है। इस प्रतिमान का मुख्य आधार शिक्षकों, अभिभावकों तथा शिक्षा से सम्बन्धित अन्य व्यक्तियों की सहभागिता है किन्तु तकनीक कक्षा परिस्थितियों के अनुरूप परिवर्तित हो सकती है। इस प्रतिमान में बच्चों के सामाजिक, भावनात्मक एवं पारस्परिक सम्बन्धों के कौशलों पर अधिकाधिक बल दिया जाता है। यह प्रतिमान इस बात को भी सुनिश्चित करता है कि सभी बालकों द्वारा समावेश का पूरा-पूरा लाभ उठाया जाये। इस प्रतिमान का मुख्य ध्येय सामाजिक उत्थान है। इसमें बालकों को साथ-साथ काम करने के लिये प्रेरित किया जाता है, ताकि बच्चों की अपनी प्रतिभाओं एवं योग्यताओं को पहचानने और उन्हें विकसित करने के अवसर प्राप्त हो सकें। इस प्रतिमान का मुख्य आधार गतिशील सहभागिता (Activity Participation) है। इस प्रतिमान के तहत बच्चे तभी अधिगम कर पाते हैं, जब वह आत्म-निर्देशित हो, अधिगम एवं क्रिया करने सम्बन्धी, उन्हें निर्देश प्रदान किये जायें, तथा उन्हें अपने शिक्षकों का चुनाव करने का अवसर प्रदान किया जाये।


10. रणनीति व्यवधान प्रतिमान (Strategies Intervention Model) इस प्रतिमान का जन्म स्थान कांसस विश्वविद्यालय (Kansas University) को माना जाता है। इसके अनुसार बच्चे की योग्यताओं तथा प्रतिभाओं का विकास तभी सम्भव है। जब वह सामाजिक प्रेरणात्मक क्षेत्रों से सीखता है। पाठ्यक्रम सही हथियार के रूप में होता है, जो उसके समावेशन में सहायक होता है। यह एक प्रणाली है. जो तीन चरणों में सम्पन्न होती है। सर्वप्रथम पाठ्यक्रम कक्षा में समावेशन में सहयोग करता है, जो केवल तभी सम्भव हो पाता है जब सामान्य तथा विशिष्ट अध्यापकों में अच्छा तालमेल हो दोनों मिलकर एक दूसरे के साथ सहयोग कर रणनीतियाँ बनाते हैं। दूसरे चरण में सामान्य शिक्षण पर बल दिया जाता है। इसमें यह भी होता है कि बालक का अनुदेशन से पहले पूर्व ज्ञान परीक्षण किया जाता है, जो कि एक अध्यापक को आगे की रणनीति बनाने में सहायक होती है, तीसरे चरण के अन्तर्गत बच्चों को अभिप्रेरणा तकनीक एवं सामाजिक कौशलों को सीखने पर बल दिया जाता है। इसमें विभिन्न प्रकार की गतिविधियों में भाग लेकर बच्चे को सामूहिक कार्य करने के लिये अभिप्रेरित किया जाता है।

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